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डाॅ शशि शर्मा

उम्र स्यानी हो गई 

डाॅ शशि शर्मा







बहुत स्यानी हो गई है

उम्र 

खुद को समझकर 

वक़्त को स्वीकारते हुए 

हालातों से समझौता 

और शिकायतों से

परहेज करने लगी है 

शब्दों और बोलों पर

कड़ी नजर है इसकी

बहुत कुछ देखा अनदेखा 

और बहुत कुछ सुना 

अनसुना करना सीख गई है

चलते हुए आसपास 

दीवारों-दरवाजों का

सहारा लेते हुए

हल्का करती रहती है

अलमारी-संदूकों का

बोझ

और बंद आंखों में

सहेजती रहती है

वक़्त की कतरनें

निभाती रहती है

यादों से यारी

क्योंकि उम्र अब 

बहुत स्यानी हो गई है ।


सांझ


भीगती है आंखें

जब किसी बुजुर्ग की

घर की दीवारें 

सीलने लगतीं हैं।


वक्त 

 

वक्त के पास 

कहां है वक्त इतना कि

वह बार-बार 

ज़िन्दगी को

वक्त देता रहे।


विडम्बना

 

दुश्मनों पर तो नजर 

रही हरदम

पर अपनों पर ही

चूक गई 

वर्ना क्या मुमकिन था कि

दरवाज़ा खटखटाते रहे

अपनों का और

आहटें गैरों से आतीं रहीं ।


शवों के बाजार में

 

बंद कमरों की 

खिड़की में

अचानक ठिठककर

ठहरी ज़िन्दगी 

देखती रही

बेभाव खर्च होते लोग

शवों के बाजार में।


किरच

 

गिलास तो 

मैखाने में टूटा था

किरचें 

घर के पांव में

चुभती रही।


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